काम से है वे राष्ट्रपत्नी, समय समय पर सम्हालते है वे गृह एवं वित्त,
पर दिखने में है वे श्वेताम्बर,
उनकी आड़ लेकर बच निकलते मनमोहन, ये कथा है बड़ी विचित्र,
मन (चित्त) के असली अम्बर है वे, कितना सार्थक है उनका नाम चिदम्बर,
खिच चुकी जिनकी कोर्ट में खाल, अब जब ख़त्म हुए सीबीआई के भी सारे शस्त्र,
क्या उन्हें गद्दी से उतार कर, मनमोहन बनेगे अब सिकंदर?
वानप्रस्थ की आयु है मनमोहन, छोड़ दो ये सारे मैले वस्त्र,
बन जाओ अब श्वेताम्बर या पीताम्बर,
धमाको के लिए गृह मंत्री, महंगाई के लिए वित्त मंत्री, भष्टाचार के लिए बाकि सारे मंत्री,
अगर यही है तुम्हारा मन्त्र,
धमाको के लिए गृह मंत्री, महंगाई के लिए वित्त मंत्री, भष्टाचार के लिए बाकि सारे मंत्री,
अगर यही है तुम्हारा मन्त्र,
तो ऐसा न हो की तुम ओड़े रहो चिदम्बर और देश की जनता नंगा कर बना दे तुम्हे दिगंबर.
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