Sunday, December 18, 2011

deja vu

ये कौन सा मोड़ है रिसर्च कैरिएर का; मख्खी, अंडे और ढेर सारी मछलियाँ;
सबमे बनाने है मुझे निओपिलासिया; पर पहले जैसी स्कील्स अब मेरी है कहाँ;
कैंसर जेनेटिक्स अब मुझे लगता है जैसे पहेलियाँ; फिश कट जाती है, पर कैसे मुझसे कटेगी ये मख्खियाँ,
किस्से कहू में ये सारी बतियाँ, ये कौन सा मोड़ है रिसर्च कैरिएर का..................

Thursday, October 6, 2011

डॉगविजय एंड कंपनी एड

पहले देखियें फिर गुनगुनाइए

ऊँची अपनी टांग है, करनी बात उटपटांग है,   ब्लेडर में अटकी जान है.
यहाँ पिलर  है बनानी, मिलता इससे सुकून है रूहानी !

(रचना इस वर्ष के Ig Nobel से प्रभावित है )

Wednesday, September 28, 2011

समानता-विडम्बना

क्या कभी आपने सोचा है की पाकिस्तानी क्रिकेटरों और हिन्दुस्तानी नेताओ के बिच, क्या समानता है? दोनों जगह भुतपूर्व क्रिकेटर नेता बन जाते है लेकिन यहाँ हम उनकी बात नहीं कर रहे है, बल्कि क्रिकेटरों से प्रेरित राजनीती की बात कर रहे है,
बयान:
(१)  मैं सभी तरह के क्रिकेट से संन्यास लेता हूँ

कुछ महीने बाद: मेने काफी सोच विचार किया और मेरे टीम के सदस्यों की सलाह से इस नतीजे पर पहुचा की मुझमे अभी बहुत क्रिकेट बाकी है और मैं अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में चयन के लिए उपलब्ध हूँ
(१’) मैंने अन्तरात्मा की आवाज पे पार्टी/पद से इस्तीफा दे दिया है

कुछ महीने बाद: जनता और मित्रों के अनुरोध पर मैं देश हित में अपना इस्तीफा वापिस लेता हूँ

आरोप:
(२) बाल टेम्परिंग:

बेशर्मी: इस तरह से गेंद के साथ हुई छेड़छाड़ को कानून बनाकर वैध बनाया जाय, इससे क्रिकेट का विकास होंगा. पूरी गेंद के साथ खेलने से क्रिकेट बोरिंग/नीरस हो जाएगा  

(२’) बिल टेम्परिंग:

बेशर्मी: इस बिल को जल्द से जल्द कानून बनाया जाय, हमने बिल में आवश्यक परिवर्तन कर लोकतंत्र को मजबूत बनाया है. पूर्ण बिल को स्वीकार करने से सविधान का अपमान होंगा.
रिश्वतखोरी
(३) नो बाल के लिए डॉलर्स: कौन सी बाल कैसी डालना है यह सब आपके पैसो पर निर्भर करेगा
(३’) नो कॉन्फिडेंस मोशन के लिए डॉलर्स: कौन से प्रस्ताव पर कैसे मत देना है ये आपके पैसो पर निर्भर करेगा.

निष्कर्ष: मलिक, सामी, आसिफ, आमेर, अख्तर, आफरीदी आदि पाक खिलाडियों को भारत रत्न दिया जाए इन्होने भारतीय लोकतंत्र की बड़ी सेवा की है.

Friday, September 23, 2011

समसामयिक

ND तीवारी की कोर्ट ने अच्छी खिचाई की, पर मुझे लगता है की अगर उनका ब्लड सेम्पल मिल जाता तो कई कोठे पर बैठी तवायफ़ों के बच्चो को बाप मिल जाता. आखिर ये अनैतिक व्यक्ति आंध्र राजभवन में ३ तिन कॉलगर्ल्स के साथ पाया गया था, अगर ८५ साल की उम्र में इनका यह हाल था तो उत्ताराखंड के मुख्यमंत्री रहतें हुए तो उन्होंने गजब ढाया होंगा, बस एक बार के ब्लड सेम्पल से ही हजारों टेस्ट लग सकते थे.
 सावन के अंधे, जिन्हें सब हरा ही हरा नजर आता है
India busy on Idea 3G , so no आबादी; government busy on camouflaging 2G , so no गरीबी.
हा हा अब तो मेरा हिन्दुस्तान प्रगति पथ पर है.
विजन २०२०:
२००५ :जो दो वक्त का खाना न खा सके वो गरीब
२०११: जो एक वक्त का खाना खा सके वो गरीब नहीं,
२०१२:जो किसी सरकार विरोधी आन्दोलन में हिस्सा ले वो गरीब नहीं
अन्ना के आन्दोलन का खर्चा सरकार ने तो उठाया नहीं, वो तो आन्दोलन करने वालो ने खुद उठाया. अब जिनके पास इस तरह के आन्दोलन में खर्च करने को पैसा है वोह गरीब कैसे हो सकते है?
२०१५ :जिसके पास हो बैंक में खाता वोह गरीब नहीं,
सरकार छात्रो के जीरो बलेंस खाते खुला रही है, गणवेश की  सब्सिडी देने के नाम पर, कल कहेगी सब्सिडी दी पढाई हो गई अब कैसी गरीबी? खाता है, मतलब जरुरत से ज्यादा पैसे है, तो फिर गरीब कैसे?
२०२०:  जो दिन में एक बार मोबाइल फोन से बात करे वो गरीब नहीं कहलायेगा.
 मोबाइल टैरिफ वार में एक दिन सब के पास मोबाइल पहुच जाएगा और फिर दिन के एक कॉल का खर्चा सरकार सब्सिडी के रूप में देंगी, और एक कॉल मोबाइल कंपनी फ्री देंगी. सरकार  कहेगी की जो इन दोनों काल्स का उपयोग  करेगा उसे गरीब नहीं माना जाएगा! क्योंकि गरीब होगा तो उसके पास बात करने की फुर्सत कहाँ से आई?

यह है सरकार का विजन २०२०. २०२० में गरीबी एकदम ख़तम.

शोएब हेस गोट टेलेंट !

सचिन मेरे से डरता है, मै भुत की पिक्चर देखा वोह मेरे सपने में आया मैंने उसे बोतल में बंद कर दिया, मै डीसकवेरी चेनल पे शेर देखा वोह मेरे सपने में आया मै  उसका सब दांत तोड़ डाला.  एक बार मै खली का खेल देखा, और उस रात मैंने उसको उसको इतना पिटा की तब से आज तक सपने में दुबारा नहीं आया.
पन जब मै TV पे  सचिन को साउथ अफ्रीका के सामने डबल सेंचुरी मारते देखा तो वो रात को मेरे सपने में आयेच नई.
क्या गुरु क्या बोलता है, वोह साला अपुन से डरता है, इसीलिए अपने सपने में आताइच नई!

Thursday, September 22, 2011

चिदम्बरम-दिगंबरम

काम से है वे राष्ट्रपत्नी, समय समय पर सम्हालते है वे गृह एवं वित्त,
पर दिखने में है वे श्वेताम्बर,
उनकी आड़ लेकर बच निकलते मनमोहन, ये कथा है बड़ी विचित्र,
 मन (चित्त) के असली अम्बर है वे, कितना सार्थक है उनका नाम चिदम्बर,
 खिच चुकी  जिनकी कोर्ट में खाल, अब जब ख़त्म  हुए सीबीआई के भी सारे शस्त्र,
क्या उन्हें गद्दी से उतार कर,  मनमोहन बनेगे अब सिकंदर?
वानप्रस्थ की आयु है मनमोहन, छोड़ दो ये सारे मैले वस्त्र,
बन जाओ अब श्वेताम्बर या पीताम्बर,
धमाको के लिए गृह मंत्री, महंगाई के लिए वित्त मंत्री, भष्टाचार के लिए बाकि सारे मंत्री,
अगर यही है तुम्हारा मन्त्र, 
तो ऐसा न हो की तुम ओड़े रहो चिदम्बर और  देश की जनता नंगा कर बना दे तुम्हे दिगंबर.

Tuesday, September 20, 2011

बीती ताहि बिसार दे.....पर कब तक?

क्या क्षमा की कोई सीमा हो सकती है? विशेष तौर पर गाँधीवाद का सम्मान सिखते और अन्ना बनने की तरफ बड़ते भारत के नौजवानों के लिए यह प्रश्न विचारणीय है. विशेषरूप से गाँधीजी ने तो कहा था अपने शत्रुओ को भी क्षमा कर दो और उनसे प्रेम करो.  तो क्या धन के लोभी और भाषणवीर नेताओ  को क्षमा मिल जाना चाहियें? शायद कुछ गांधीवादी लोग मुझसे असहमत हो लेकिन मेरा मानना है की इसकी(क्षमा कर पाने की) भी एक सीमा है, और उस सीमा के पार जाने वालो को दंड ना मिलना अकर्मण्यता होंगी, जो गांधीवाद को कलंकित करेगी.
महाभारत के कई लोगो ने भिन्न-२ निहितार्थ निकाले है, ऐसा ही एक मेरा निचोड़ है की, महाभारत यह कहती है की उस शत्रु को कभी क्षमा मत करो जो युध्ध समाप्ति के बाद प्रहार करे | इश्वर दया के सागर है, करुणा निधान है लेकिन वे भी अश्वथ्थामा को क्षमा नहीं कर पाए तो हम मिट्टी के पुतलो की क्या बिसात. दुर्योधन और शकुनी जैसे कपटी और कुटिल भी इश्वर की कृपा से, पीड़ा से मुक्ति पाकर मोक्ष और इश्वर के चरणों में स्थान पा लेते है, लेकिन अश्वथ्थामा के लिए प्रभु चरणों में कोई स्थान नहीं है और काल के अंत तक पीड़ा ही उसका भाग्य है. युद्ध में लड़ता हर सैनिक अपने कर्त्तव्य से बंधा होता है, उनके दिए घाव या तो भर जाते है, या घायल वीरगति को प्राप्त हो जाते है, लेकिन युद्ध में मिले घावो को कुरेदने और उस पर नमक छिडकने वाले, घावो को कभी ना भर पाने वाले नासूर बना देने वाले तो अमानवीय राक्षसों की श्रेणी में ही गिने जाते है, उन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता केवल पीड़ित किया जा सकता है. 
इस लिहाज से हमें चीन और पाकिस्तान को कभी माफ़ नहीं कर सकते क्योंकि वे युद्ध विराम के बाद प्रहार कर रहे है.  लेकिन ये बात  सिर्फ देश और सैनिक लड़ाइयो पर लागु नहीं होती , कोर्ट में जिरह और जहर उगलने के बाद एक पक्ष जीतेगा और एक हारेगा लेकिन जो पक्ष अदालत में फैसला समाप्त होने के बाद दुसरे पर प्रहार करे, उसे पीड़ा देने के लिए आपको आगे आना चाहिए, क्योंकि यही आपका कर्त्तव्य है. 
उसी प्रकार दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के वे नेता जो अब अन्ना पर प्रहार कर रहे है, वे माफ़ी पाने के न तो कभी योग्य थे और न ही कभी होंगे. हाँ मनीष तिवारी को क्षमा मिल सकती है, क्योंकि उसने युद्ध से पहले सिर्फ आलाकमान के हुक्म की तामिल की थी. इस युद्ध या अन्ना की स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई से ये साबित हुआ की असली आलाकमान तो देश की जनता है. जो अब भी मरते हुए दुर्योधन का मोहरा बन, अन्ना या जनता से लड़ रहे है, उन्हें इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा और न हीं हमें उन्हें करना चाहिए, समय आ गया है इन अश्वथ्थामाओ को जीवन पर्यन्त पीड़ा देने का.

Thursday, September 15, 2011

Spam campaigner on the roll


This post is in English, I apologise as I do not have time to translate it in Hindi.
The small time I get on the net get wasted due to an ill-informed spam campaigner, I believe he might be a hacker as well. He has got my email address and idiot keeps bugging my mail box, . This post has been written with mind of clearing doubts of patriotic Indian, who might have got confused with this kind of hate campaigns. Let me remind that “united we stand.......
 he started his bullshit with psuedo-Gandhism ( refer to previous post for exact context) "....फिर भी कुछ नौजवान आगे आना चाहते थे लेकिन "गांधीवादियो" ने अहिंसा परमोधर्म का पाठ पढ़ा कर कायर बना दिया "  How can you even think that this act can be called Ghandhism?  A true Gandhian will come forward saying you have to kill me to commit crimes you are intending to do against innocents. Gandhism is a path of sacrifice, not of comfort. 
Those who call Netaji Subash as their ideal, how they can disrespect a person, who was labelled as father of the nation by none other than Netaji himself. Ultimately everybody accepted Gandhi as father of nation, but this honour/title was first given to him by Netaji, so your ideal had great respect for Gandhiji (actually Gandhiji also had great respect for Netaji). Therefore you should learn to respect, the respect given by your ideal.
Those who call Bhagat Singh their Ideal, should know that Bhagat Singh sacrificed his life after Lala Lajpat Rai's death. A renowned Gandhian lajapat rai was brutally killed by british police officers, and it deeply shocked young Bhagat Singh. Ideal of your Ideal's ideal, was MK Gandhi, so please respect this relationship of respect.
This spammer has got some like minded persons who think Congress = Gandhism. As if congress has always fallowed path of gandhism and holds patent on it. Please read and understand history before propagating these kinds of stupid thoughts, congress and gandhi were different from the day of independence. Read Hind Swarajya(freely available over internet in Hindi and English) to understand Gandhi's views. You must understand that Gandhi should be first one in the history to be issued a breach of privilege notices as he had compared parliamentarian democracy with a prostitute! He has also called MP's immoral persons.
 Unfortunately what we had got was not the independence that Gandhi had wished for, he wanted to completely ban intoxicating agents like liquor, tobacco and all the drugs. Ironically, what we got was a chain smoker prime minister in Nehru and tobacco chewing vice president.
You must also understand that Sardaar Patel was "My way or highway" kind of person, wounds of partition were too green to get such an administrator as head of India. If you don’t want to believe me then go read how he killed free press news agency, particularly those who call themselves an independent journalist, they should know how he behaved with an upright journalist, just because he didn't adhered to dictates of then home minister Sardaar Patel.
Gnadhi himself was probably too devoted to public/villages (once again refer to Hind Swarajya to understand this) to hold administrative duties.
We had kind of leadership crisis at the time of independence, we needed Netaji Subash and Bhagatsingh, but they had already sacrificed their life, and they were not around when nation was baldy in the need. Perhaps in Lal bahadur we had that kind of ideal person, but for national level politics he was find of Nehru, and before 1951 (that is 3 years after demise of Gandhiji), he had been active only in a small region. But quite possible that he was alone even in congress, and conspirator congressians poisoned him, and in the end he sacrificed his life away from this country. Ask yourself how many of you knew about Anna hazare and Baba Ramdev, 20 years ago?

Congress has been divided at least 10 times after independence. And current congress is not the original congress; it is congress I (where I stand for Indira gandhi). Something which has gone through so many changes cannot be compared with original one.
Baba  Ramdev and Anna both deeply respect each other, if you are fallower of one, please don't dirty your hands in mud war and get united you have to fight with conspirators and nation needs you once again. By getting divided you are making job of goverment easy. Adwani or BJP is not your well wisher; do you remember Baba ramdev saying an Uttrakhand minister demanded 2 caror bribe for his trust's work? BJP has removed Nishank as CM but plans to give him party position, but why? Somebody can be either clean or malign, how can he be reformed by giving another plum position?  

Wednesday, September 7, 2011

एक ईमेल और उसका जवाब


 गत दिनों एक राष्ट्रभक्त का  ईमेल मिला, सोचता हूँ उसे आप लोंगो के साथ साझा करूँ

(१) पहले मेरा जवाब
हे राष्ट्रभक्त , माता पिता के लिए तो चिरनंत संसार से मुक्ति का लक्ष भी त्यागा जा सकता है . शत शत नमन उस वीर को जिसकी यह गाथा लिखी हुई है. लेकिन जिस तरह एक मूर्तिपूजक को, निर्गुण ब्रह्म के उपासक भक्त का मखोल उडाना शोभा नहीं देता, उसी प्रकार , आपको अहिंसावादियो की बुराई शोभा नहीं देती . लक्ष केवल एक है राष्ट्र का उत्थान . अकर्मण्यता मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है, एक अहिंसक को वक्त आने पर हिंसा कर्म का अवलंबन करना पड़ सकता है, यह उसका धर्म ही होंगा की वक्त की पुकार पर अहिंसा का सहारा छोड़ कर शस्त्र उठायें . परन्तु इसका अर्थ यह नहीं हुआ की जो लोग अहिंसक है वोह कायर है. हिंसा और अहिंसा दोनों समय आने पर आलस्य का प्रतिरूप हो सकते है. हेय और त्याज्य तो आलस्य और अकर्मण्यता है,विचारधारा नहीं. यदि समय होता तो में आपको तर्कों के साथ उचित जवाब देता परन्तु इस समय बस इतना ही.
एक बार पुनः नमन देश के सपूतो को. 
आपका
नीलम
(२) उनका पत्र  
"मै अहिंसावादी नहीं हूँ" हाँ ये अलग बात है कि कभी जानबूझ कर एक चीटी भी नहीं मारा, फिर इस तरह से देखा जाय तो मै हिंसावादी भी नहीं हूँ, बात १९१४ कि है मेरी उम्र १५ साल कि है मेरा घर एक धार्मिक किन्तु छोटे सहर के अंग्रेजों कि छावनी के करीब है पिता किशान और मै आवारा (पिता कि निगाह में) बंदेमातरम, इन्कलाब जिन्दावाद, अंग्रेजो भारत छोडो के नारे लगाने वाला, रोज कही न कही भीड़ में सामिल हो कर यही करते, तबतक, जबतक गोरे अंग्रेज अफसर कि अगुआई में काले अंग्रेज हमें भगाते नहीं, एक दिन काले अंग्रेज ने "गोरे" से हमारी पहचान बता दी फिर क्या था एक गोरा अंग्रेज अफसर चार गोरे सिपाही और २० काले अंग्रेज सिपाही मेरे कर्मो की सजा मेरे परिवार को देने के लिए घर पे धावा बोल दिए घर में माँ के आलावा दो बहने भी थी एक मुझसे बड़ी १६ साल की सादी हो गई थी बिदाई नहीं हुई थी, दूसरी १३ साल की मुझसे छोटी, मुझे और मेरे पिता को मेरे आंगन में ही बांध दिया और हमें खूब मारा इतना मारा की पिता जी कब मर गए पता ही नहीं चला बस आवाज आनी बंद हो गई, गाँव के नौजवान आगे आने की कोसिस की तो काले अंग्रेजो ने डरा कर भगा दिया फिर भी कुछ नौजवान आगे आना चाहते थे लेकिन "गांधीवादियो" ने अहिंसा परमोधर्म का पाठ पढ़ा कर कायर बना दिया जुल्म की इन्तहां तो तब हुई जब हमारे सामने ही मेरी माँ और बहनों पर अंग्रेज भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़े उस एक छण में ही "गांधीवाद" का अर्थ और परिणाम दोनों सामने था अब तो मेरे पास न मेरा गाल बचा था दूसरा थप्पड़ खाने के लिए और ना हि दूसरी माँ और बहन उन्हें लाकर देने के लिए मै "गाँधी" के आदेश का कैसे पालन करता "मरता क्या न करता" फिर क्या था माँ भारती का नारा लगाया "बंदेमातरम" और रन चंडी बिन्ध्य्वासनी का घोष इतनी जोर से किया कि रस्सियो का बंधन कब टूटे पता नहीं कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही मै रसोई में भागा मिटटी के तेल से भरा डब्बा और माचिस उठा कर बाहर भागा काले और गोरे सिपाही सोच रहे थे की मै जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहा हूँ लेकिन मेरे दिमाग ने तो रणचंडी का नाम लेते ही एक छण में सोच लिया था की आगे क्या करना है बाहर निकलते ही दरवाजे पर लगी छप्पर में आग लगा दी घर के चारो तरफ छप्पर लगी थी पसुओ को बाधने के लिए, बस मै तेल डालता गया आग ने पुरे घर को घेर लिया कोई नहीं बचा सारे के सारे २५ सिपाही काले और गोरे दोनों जल कर राख हो गए, लेकिन उस आग ने मेरे पिता, मेरी माँ, और बहनों को भी जला डाला मेरे मन कि आस्था "अहिंसावाद" और "गांधीवाद" को भी जला कर राख कर दिया अब मै अकेला नहीं था मेरे साथ सात और नौजवान हो लिए थे आपस मै परिचय बस "बंदेमातरम" था अंग्रेजो का हमला हमारे घर पांच बजे सुबह सुरु हुआ था और उपरोक्क्त सारी घटनाये आधे घंटे मे घट चुकी थी हम पागल हो चुके थे हमारे हाथो मे मिटटी के तेल के डब्बे और जलती हुई मशाले थी "बंदेमातरम" का नारा लगाते हुए छ बजते बजते हमने अंग्रेजो कि छावनी पर धावा बोल दिए अब तक हमारी संख्या पचासों के उपर पहुँच चुकी थी ज्यादातर हमारे गावं के नौजवान ही थे लगभग एक किलोमीटर के दायरे मे बसी पूरी छावनी को हमने आग के हवाले कर दिया, हमारे कुछ साथी भी अपनी जान गवा चुके थे, साम होते होते हमारे सभी साथी अलग अलग भूमिगत हो गए, पूरा गावं ख़ाली हो चूका था अंग्रेजो ने बाहर से सेनाये बुलाकर साम होने से पहले मेरे गावं पर धावा बोलकर जला डाला लेकिन तबतक इन्सान तो क्या कुत्ते भी गावं छोड़ चुके थे बस और बस मै अकेला अपनी माँ और बहन कि लाश के पास बैठ कर रो रहा था अंग्रेज फिर मेरे घर के करीब भी नहीं आये कब तक रोता ? सोचा पिता, माता और बहनों कि अस्थिया ले कर गंगा मे बहा दू पर चाह कर भी येसा कर न सका, सरीर ने साथ नहीं दिया फिर मुझे अहसास हुआ कि मेरा तो सरीर ही मेरे साथ नहीं है मै बस एक सोच हु बस एक आत्मा अपने सवालों के साथ आज भी भटक रहा हु, मेरी आत्मा ने मेरे सरीर को कब?, क्यों?, कैसे? और कहाँ छोड़ा?, मैने तो आजादी मागने कि गलती कि थी पर मेरे पिता, माँ,  और बहनों ने कौन सी गलती कि थी? मै तो "अहिंसावादी" "गाँधीवादी" था फिर ये सब मेरे साथ क्यों हुआ? गांधीजी ने तो हिंसावादी कह कर हमसे नाता ही तोड़ लिया पास ही नहीं आने देते आखिर क्यों? मैने जो भी किया अगर वो न करता तो क्या करता? अंत मे, हमारे साथ लाखो आत्माए हमारी तरह ही इन्ही सवालों के साथ भटक रही है क्युकी भारत के लाखो गावो मे लगभग येसी ही घटनाये दुहराई गई है, और अब आखिरी सवाल आपसे (जिन्दा इंसानों से) "अहिंसावाद" का शाब्दिक अर्थ और पर्यायवाची शब्द शिर्फ़ और शिर्फ़ "कायरता" होता है यदि नहीं तो बताये?                   
--
ॐ बन्दे मातरंम जय हिंद

Monday, September 5, 2011

शरद उवाच, राष्ट्रपति और राज्यपाल

शरद यादव बाकि सांसदों की तरह ही, भ्रष्ट और बेईमान है, उनका अन्ना के लिए दिया बयान भी निंदनीय था, मगर है तो वे भी इनसान, गलती कर ही बैठते है, और गलती से कभी कभी कोई अच्छी  बात कह देते है. राष्ट्रपति और राज्यपाल बेचारे निरीह बेजुबान प्राणी होते है. और जब तक आंध्र के भूतपूर्व राज्यपाल N D तिवारी की तरह संन्यास की उम्र में चार धाम के बजाय खजुराहो की यात्रा न करले, उन्हें हटाया नहीं जाता, बस हांका जाता है. 
  भाई हमारा सुझाव तो यह है की, राष्ट्रपति बनाया जाय, प्रधानमन्त्री के पार्टी अध्यक्ष को, इससे दो फायदे होंगे, एक तो राष्ट्रपति के पास पार्टी व्हिप के नाम पर हाकने की ताकत होंगी, तो दूसरी तरफ उसका कोई सवेधानिक पद मिल जाएगा, परदे के पीछे छुप कर काम करने की जरुरत नहीं रहेगी. जनता भी ये सोच के खुश हो जाएँगी की रिमोट कंट्रोल के सर पे इतना काम है की वोह बात बात पे PM को हांक नहीं पाएगी. तो कुल मिलाकर सब खुश.
 राज्यपाल के पद को खतम करके सिर्फ लोकायुक्त बना दिए जाए ,  भाई काम तो दोनों का ही राज्य  सरकार के कामकाज की समीक्षा है, तो फिर क्यों न एक ऐसे व्यक्ति को लाया जाय, जिससे आम आदमी जाकर गुहार कर सके, अपना दुखड़ा सुना सके.

Thursday, August 25, 2011

अन्ना (हजारे) टेल

जैसे हर ख़ूनी को बचाने के लिये एक रामजेठमलानी होता है
ऐसे मनमोहन को लोकसभा में बचाने के लिये एक आडवानी जरुरी होता है
JP, BJP, LJP बेईमानो के पीछे जयप्रकाश लगा देख के अफ़सोस होता हैं
पर हर एक पार्टी के लिये भ्रष्टाचार जरुरी होता है
और हर भ्रष्टाचारी को ईमानदारी से तोड़ने के लिये है अन्ना हजारे
अपनाइए अन्ना टेल बिना अपनी पार्टी बदले
ला ला ला ला ला ला