Saturday, October 2, 2010

गांधीवादी ताऊ (माइक्रो पोस्ट )

"श्री श्री १००८ ताऊ प्रसन्न "
धन्य हो ताऊ धन्य हो, पिछली पोस्ट कुछ ये सोच के लिख दी थी की
"रंजिशे ही सही, गरियाने के लिये फ़ोन लगा"
बाकि जैसा पिछली पोस्ट में कपिलाजी की टिप्पणि के उत्तर में लिखा था, हम उनसे कुछ अपेक्षा नहीं कर रहे थे। पर ताऊ ने न केवल पोस्ट पढ़ी बल्कि उसके लिये धन्यवाद भी दिया। मानो कह रहे हो
"रंजिशे ही सही, आ दुसरे गाल पे तमाचा जड़ने के लिये आ
आ मुझे फिर से चिडाने के लिये आ "
ताऊ, आर्ट ओफ लिविंग का कौर्स कर लिये हो? या बाबा रामदेव का ध्यान-योग शुरू कर दिए हो? कुछ ज्ञान मिले तो हमें भी अंधियारे में मत छोड़ देना।
"रंजिशे ही सही, आ मुझे गरियाने के लिये ही टिप्पिया "

Wednesday, September 29, 2010

श्रीमद ताऊ पुराण

भक्ति की श्रंखला जारी रहेगी, आज का दिन विशेष है इसलिए, आज ताऊ पुराण पढी जाएगी।
विशेष सुचना: हमारे नायक ताऊ का सिर्फ एक ही जीवित व्यक्ति से सम्बन्ध है, कोई अन्य इसे अपने सन्दर्भ में देखता है तो उसकी अपनी मर्जी।
चरित्र चित्रण: ताऊ लगभग ३० साल का है पर ताऊ के बाल सफ़ेद है (आजकल डाय कर रहा हो तो पता नहीं)। ताऊ को कोई भी बात याद नहीं रहती, विशेष तौर पर जब फोन करने का वादा किया गया हो तो आप गारंटी के साथ कह सकते है की फोन नहीं आएगा। ताऊ हर चीज से बड़ी जल्दी बोर होता है , मसलन ताऊ की ३ बिबिया है, (१) सिगरेट (२) दारु (३) उसकी मोटर साइकिल, पर ३ बीबियों से बोर होकर वोह आजकल ४थि खोज रहा है। फिजिक्स से प्रेम करते करते इंजीनियरिंग कर बैठा, फिर सॉफ्टवेर बनाए फिर बोर हो गया तो हार्ड वेयर बनाए, अब सबसे बोर होकर कुछ समय पहले तक आगे पढने की सोच रहे थे, आजकल क्या सोच रहे है वोह या तो वोह जाने या खुदा।
कथा: ये कथा कई साल पहले की है, ताऊ के जन्म के भी पहले की। ताऊ स्वर्ग में थे , रात का समय था और अगले दिन सुबह ताऊ का भगवान् के साथ अपोइन्ट्मेन्ट था, ताऊ अपने पिछले दिन याद कर रहे थे, ताऊ अपनी लम्बी उम्र पूरी कर स्वर्ग आये थे खुश थे ये सोच कर की उनके सभी रिश्ते नातेदार उन्हें यही पर मिल जायेंगे। पर यहाँ आकर देखा तो पिछले बेच का तो पहले से ट्रान्सफर हो चूका था, ताऊ को लगा की उम्र पूरी करके कोई भूल ही कर दी, इससे तो जेहादी ही बन जाते, कम से कम दो चार लोग साथ तो आतें। मरे तो अकेले, यहाँ आये तो अकेले और आकर भी अकेले!
सब का सब रौशनी का बना हुआ है यहाँ, कुछ भी आर्ट या आरटीफिशिअल नहीं, रोज वही चेहरा, धरती जैसा नहीं की रोज कपडे बदल लिये, कभी जब कुछ अप्सराओ को कोई मृत देह धारण करने को मिल जाती है तो वोह डांस करती है, डांस भी कैसा, पुरे कपडे पहन कर झुर्रीदार चेहरे के साथ क्लास्सिकल, कोई हिप होप नहीं, बेली या बिकनी डांस नहीं बोरिंग। भगवान् ही बचाए जब देह की हड्डियां टूटी होती है तो डांस देख कर सर पीटने का मन करता है, रोज भगवान् से प्राथना करता हूँ की भगवान् अपने जिहादी भेजो ताकि इन्हें आसानी के साथ जवान और सुन्दर देह मिले धारण करने को, कम से कम कोई सुन्दर चेहरा तो मिले आँख सेकने को पर भगवान् है की सुनता नहीं। पहली बार इतने सालो के बाद मौका मिला था अपने सारे गिले शिकवे सुनाने का, ताऊ को रात भर नींद नहीं आई और सोचते हुए कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला।
भगवान् से मिले तो उन्हें कुछ कहने की जरुरत ही नहीं पढी (भाई वोह तो मन की बात पहले से ही जानते थे भगवान् जो ठहरे!) उन्होंने ताऊ को धाडस बंधाया, बोले "ताऊ तुम बोर हो गए हों ऐसा करते है देवता ११ बनाम मुर्दा ११ क्रिकेट टेस्ट मैच कर लेते है , तुम्हारा मन बहल जाएगा।" ताऊ खुश, चलो कुछ तो नया होंगा और एक दो दिनों के लिये नहीं पुरे ५ दिनों के लिये। तय समय पर मैच शुरू हुआ, पर ये क्या , रूह बेट्समैन को पहले से पता था की बाल कहा आएगी, फील्डर रूह को पता था की बाल कहाँ जायेगी, कोई रन नहीं कोई उत्साह नहीं, रन बने तो सिर्फ नोबाल और वाइडस में, टास जित कर मुर्दा टीम ने तीन दिन में ११ रन बनाकर पारी की घोषणा की, देवता टीम दो दिन में १० रन बना कर नाबाद रही। खेल के अंत में जब देवता टीम के कैप्टेन इन्द्र ने मुर्दों को बधाई दी और कहा की "वाह मजा आ गया ऐसे मैचो की श्रंखला हो जाए!" तो ताऊ का सर घूम गया, बिना अपोइन्ट्मेन्ट के सीधे खुदा से मिलने पहुच गया। खुदा ने कहा "ताऊ तुम वाकई विशेष हो स्वर्ग से बोर हो गए तो जाओ नरक में रहो, कुछ महीनो के बाद आना, उस समय से यदि चाहो तो स्वर्ग में ही रहना "। इस तरह के ट्रान्सफर आर्डर पर ताऊ को समुझ में नहीं आया की रोये की ख़ुशी मनाये।
खैर कुछ समय के बाद श्राद्ध पक्ष में नरक और स्वर्ग के रहने वालो को १५ दिन की छुट्टी मिली, एक बार फिर ताऊ बिना अपोइन्ट्मेन्ट के सीधे खुदा से मिलने पहुच गया। भगवान् ने पूछा की क्या हाल है, ताऊ खुश, पहली बार खुदा से अपनी जुबा में बात करने का मौका मिला है, नहीं तो वोह कुछ कहने ही नहीं देते, खुद ही पढ़ लेते है, शायद आजकल ज्यादा बीजी है , वैसे भी श्राद्ध में पूजा पाठ ज्यादा होता है। ताऊ तपाक से बोल पड़ा की उसे नरक में अपना हीटेड स्विमिंग पूल बहुत पसंद है, और वहां होने वाली मसाज की तो उसे आदत पड़ गई है रोज नए लोग मिलते है कुछ नया होता रहता है।
भगवान् भी एक बार चकरा गए नरक में हीटेड स्विमिंग पूल, (अब तो नरक का बिजली का बिल देखना पड़ेगा!) चुकी ताऊ खुश था भगवान् कुछ बोले नहीं, और ताऊ भी अपने रस्ते निकल लिये अपनी छुट्टी मनाने। दरअसल गरम तेल के कढाह को ताऊ को स्विमिंग पूल समझता था क्योंकि उसे पता था की देह तो अपनी है नहीं, और ये जलेगी भी नहीं वोह बेखोफ उसका मजा ले रहा था, कहने की जरुरत नहीं की हथोडो की मार को वोह मसाज कहता था।
भगवान् को भी लगा की ताऊ कुछ दिन और नरक में रह लिया या किसी स्वर्ग वाले से धरती पे मिला तो संसार का पूरा का पूरा बंटाधार हो जाएगा,ताऊ अभी धरती पे पहुचे ही नहीं थे की, भगवान् ने आर्डर जारी कर दिए, "तुरंत पैदा हो जाओ।" हड़बड़ी में ताऊ को गेटअप चेंज करने का मौका नहीं मिला नतीजतन, आज से ३० साल पहले बुड्ढे के रूप में पैदा हुए और इस तरह हमें हमारे प्यारे प्यारे ताऊ मिले
इति श्री ताऊ कथा
जन्मदिन तुम्हे बहुत बहुत मूबारक हो ३-४ बीवियों से फुरसत मिले तो कभी कभी फ़ोन कर लेना (पता है की आपको याद नहीं रहेगा पर एक दोस्त होने के नाते आग्रह करना तो हमारा हक़ है ना भाई)
नीलम

Monday, September 13, 2010

भक्ति का पतन 2

आम तौर पर मेरी रचनाये किसी ऐसी घटना से प्रेरित होती है जो मुझे लिखने पर मजबूर कर दे, रीडिफ़ पर की जा रही बकवास ने मुझे मजबूर किया था, और गणेश प्रतिमाओं के बड़ते आकार ने मुझे एक बार फिर विवश किया। यही दोनों घटनाएं इस पूरी श्रंखला का केंद्रबिंदु हैं।
भक्ति को वैसे तो कई प्रकारों में बाटा जाता है परन्तु मै स्वयं इसे ३ प्रकार की ही मानता हूँ, क्योंकि मेरा मानना है की भक्ति मै भाव ही मुख्य है बाकी सब तो गौण हैं।
(१) दास्य भाव (२) मित्र भाव (३) वात्सल्य भाव
आज मै पहले प्रकार का विवेचन करूँगा।
दास्य भाव की भक्ति सबसे ज्यादा प्रचलित है, हिन्दू धर्म मै यदि ईश्वरीय अवतार के प्रति दास्य भाव है तो मुस्लिम/ सिख/ इसाई धर्मो मै आकारहीन सर्वशक्तिमान के प्रति. परन्तु याद रहे की दास्य भाव मे प्रश्नों के लिये कोई स्थान नहीं हैं। क्योंकि इश्वर के दास का इश्वर पर कोई अधिकार तो है नहीं जो परमात्मा उसे उत्तर देता फिरे, उसे तो बस भक्ति करते जाना है, इश्वर के गुण गाना और इश्वर के अन्य सेवक मनुष्यों की सेवा करना ही उसके लिये धर्मं है। इस तरह की भक्ति अहंकार को गलाने की लिये तो उत्तम है लेकिन, विज्ञान के इस युग मे सबसे मुश्किल है, क्योंकि बचपन से ही हमें अविश्वास की घुट्टी मिलती है, और हर चीज पर प्रश्न और विचार करना हमारे स्वभाव का हिस्सा बन जाता है। बस यही से सारी समास्याए शुरू हो जाती है, धर्म विज्ञान को अंधा कहता है और विज्ञान धर्मं को। इस परस्पर टकराहट मे इश्वर से विश्वास डिगने लगता हैं क्योंकि दिखाई तो विज्ञान देता है इश्वर नहीं।
परतो के निचे जाकर धर्म और विज्ञान के एकात्म्य को देखने के लिये धर्म गुरुओ की आवशयकता है, पर अच्छे गुरु की तलाश आसान नहीं है , जो मिलते है उनमे से कुछ अपना हित साधते हैं तो कुछ विज्ञान को नजरअंदाज कर किताबी ज्ञान पर जोर देते है। गलत और आधा ज्ञान कुछ लोगो को मजहबी उन्माद की सीमा तक ले जाता है तो कुछ को नास्तिक बना देता हैं।

Sunday, September 12, 2010

भक्ति का पतन 1

पता नहीं इस गणेश चतुर्थी पर कितने फिट ऊँची प्रतिमाये स्थापित हुई होंगी। लेकिन एक बात तो तय है, की मूर्ति जीतनी ऊँची होंगी भक्ति का स्तर उतना निचा गिरेगा। भक्ति इश्वर प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है किन्तु, इश्वर तक पहुचने के लिये अहंकार और स्वार्थ को गलाना पड़ता है, गणेश पांडाल ऊँची मूर्तिया स्थापित कर, यह अहंकार पालते हैं की उनकी मूर्ति पडोसी पांडाल से ज्यादा बड़ी है! क्या आप भक्ति को नाप सकते है? भक्ति का तो मूल ही है की सब कुछ तू है, मेरा कुछ नहीं, फिर अहंकार और दिखावा क्यों? क्या बड़ी मूर्ति बनाने से गणेशजी प्रसन्न हो जायेंगे? आप पूरी पृथ्वी जितना बड़ा पांडाल भी बना दे तो भी आप गणपति के आगे तो गौण ही रहेंगे, तो उनके उन भक्तो को नीचा क्यों दिखाना चाहते है जो आपके पड़ोस में पूजा कर रहा है?

Tuesday, September 7, 2010

धर्म पर सवाल करे, पर टिका टिप्पणी करने से पहले सोच विचार जरुर करे

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यह पोस्ट अंग्रेजी में है और यह सीधे मेरे rediff ब्लॉग से उठा है, यह आप में से ज्यादातर के लिए पठनीय होनाचाहिए. दुर्भाग्य से मेरे पास इसे हिन्दी में अनुवाद करने का समय नहीं है।
हाल ही में, मैं पाक में कुछ लोगो के नास्तिक बन जाने के बारे में rediff पर एक लेख पढ़ रहा था. दुर्भाग्य से वहाँपर हो रही चर्चा अक्सर हिंदू बनाम मुस्लिम रुख ले लेती है। मैं उन बिन्दुओ पर जो वहां इस्लाम के बारे में कही जारही है कोई टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि इस्लाम के बारे में मेरी अपनी समझ सीमित है, लेकिन मैं कुछ उनचीजो के बारे में लिखना जरुर चाहूँगा जो वहां पर हिंदू धर्म के बारे में कही जा रही है।
Krishna and number of his wives: Each soul has yearning to be with supreme being, Krishna is believed to be highest level incarnation of supreme lord. Therefore people found him too attractive and his another name was Mohana, which literally means Mr. Charming. Several of the women in his era couldn’t take their gaze off the lord, you can imagine if you have god in front of you, you wouldn’t like to be with anybody else. Still he married to 16000 of women abducted by a criminal named Narkasura, if he wouldn’t have married them, society would have rejected them.Where else you find this kind of benevolence for the fallen ones except by lord himself? He didn’t chose his brides, fathers of prospective brides and brides themselves chose him. God’s door is opened to everybody
Shiva chopping of head of his son: Basic thing one needs to understand is worshipers of shiva are basically worshipers of nature. The story has a moral, and comman man understands that moral. But this is not a fairy tale, this is story of creation and destruction. Every entity is believed to be alive in front of god and it includes, mountains rivers and rocks. Shiva chopped of head of a boy, who was preventing him from meeting his beloved wife(unknown to him boy was created by his wife himself hence should be considered his son) before you take any other menaing of this story you need to understand that Shiva’s wife was a daughter of mount Himalaya, and therefore she is not a human like me and you, made up of flesh. To understand the basic moral that one shouldn’t act in haste like Shiva, is easy but to understand divine creation and destruction, one need to develop higher level intellect

Friday, February 19, 2010

मुग़ल इतिहास मेरी नजर से!

मुग़ल सल्तनत का इतिहास परवरिश के लिये एक बहुत बड़ी सिख है. अकबर १३ वर्ष की कम आयु में ही बादशाह बना दिया गया था क्योंकि हुमायूं की मृत्यु समय से बहुत पहले हो गई थी. परन्तु राजसत्ता के भूखे लोग सत्ता पर काबिज होने के लिये तरह तरह के षड़यंत्र रचते रहे. चमत्कारिक रूप से या ईश्वर की इच्छा से अकबर न केवल साबुत बच निकल गया वरन इनका सामना करते करते उसने स्वयं ही सिख लिया की किस तरह मजबूत इंसान और मजबूत बादशाह बना जाय। शायद जीवन की सबसे बड़ी सिख उसके लिये अनुशाशन थी। अकबर ने स्वयं अनुशाशन जीवन से लड़कर या कहले की ठोकर खाकर सिखा था, परन्तु उसने सलीम पर अनुशाशन थोपने की कोशिश की। सलीम हठी होता गया और अनारकली जैसे प्रकरणो के लिये अकबर को उसके खिलाफ बेहद कठोर रुख अपनाना पड़ा। सलीम ने हमेशा खुद को एक राजकुमार के रूप में देखा और उसे अकबर का अनुशाशन अमान्य लगा, पर अनुशाशन की महत्ता को नजरअंदाज कर वोह खुद कभी अकबर जितना प्रभावी प्रशासक और शहन्शाह नहीं बन सका. इसका एक और परिणाम ये भी हुआ की उसने अपने बेटे शाहजहाँ को बेहद लाड प्यार से पाला। जिससे शाहजहाँ का मन मश्तिष्क ही इस बात में विशवास करने लगा की चाहे कुछ भी हो जाए उसकी रंगरलियों में कोई खलल नहीं पड़ना चाहियें। शाहजहाँ इतना ज्यादा विलासी था की इरान से आया लुटेरा नादिर शाह उस सिंहासन मयुरतख्त को ही उठा कर ले गया जिस पर शाहजहाँ बैठा था। नादिर शाह चाहता तो हिन्दोस्तान पर आसानी से राज कर सकता था, लेकिन शायद उसे अपना वतन प्यारा था। शाहजहाँ की विलासिता का एक और नमूना है खुद मुमताज महल, जो आगरा से लगभग ९०० किलोमीटर दूर बियाबान जंगलो में अपनी १६वि संतान को जन्म देते समय मारी गई, सवाल ये है की मुमताज गर्भावस्था में राजधानी से इतनी दूर कैसे पहुच गयी? क्या जनाब शाहजहाँ इस कदर पागल थे की ये समझ नहीं पाए की अपनी प्रिया को गर्भावस्था में शिकारगाह पर ले जाकर उसकी मौत को दावत दे रहे है? १६-१७ शताब्दी में जन्म देते समय बहुत बड़ी संख्या में स्त्रियों की मृत्यु हो जाती थी, तो एक महारानी को तो अपने राजमहल में होना चाहियें ना ऐसे समय, जहां बेहिसाब दास दासियीं और वैद्य-हाकिम उनको देख सके, बियाबान जंगलो में उसे क्या मिलेगा मौत के सिवाय? जो लापरवाह बादशाह अपनी विलासिता और वासना के चलते अपनी सबसे प्रिय पत्नी को इस तरह से मौत के मुह में धकेल सकता है उसके राज में प्रजा का क्या हाल होंगा इसकी तो बस कल्पना ही की जा सकती है! न केवल नादिर शाह जैसे बाहरी लुटेरे जनता का खून चूस रहे थे बल्कि भीतरी सामन्तो ने भी अवाम का हद से ज्यादा शोषण किया। शाहजहाँ को सिर्फ अपनी विलासिता से मतलब था तो उसने अपनी अगली पीढ़ी पर कोई ध्यान नहीं दिया, परिणाम स्वरुप उनके सबसे बड़े बेटे “दारा शिकोह” को प्रशाशन छोड़, पढ़ाई लिखाई से ही मतलब था , और औरंगजेब को ये लगने लगा की हिन्दुस्तान का मुस्लिमिकरण ही सभी समस्याओं का अंत है, शायद उसने नादिर शाह और इरान की कट्टरधर्मिता को ही अधिक मजबूत और आदर्श मान लिया था. जेहादी विचारो के साथ सेना और प्रशासन पर औरंगजेब की पकड़ शाहजहाँ और दारा शिकोह से भी कही आगे बड़ गई। दारा शिकोह को मौत के घाट उतार कर और शाहजहाँ को जेल में सड़ने के लिये डालकर औरंगजेब ने परवरिश का अध्याय पूरा कर दिया। काम(राजकाज) में ज्यादा अधिक ध्यान और अत्यधिक अनुशासन से सलीम/ जहांगीर पैदा होते है, जरुरत से ज्यादा लाड प्यार और शाहजहाँ जैसे लापरवाह विलासी संतान होती है, कोई ध्यान ही न दो तो आपको जेल में सड़ने छोड़ने वाली औलाद मिलेंगी। आपको इन सबके बिच में अपनी संतान का मित्र होना चाहियें।मित्रता करने  के लिए अक्सर आप अपनी पिछली पीडी से शिक्षा नहीं लेते बल्कि मित्र तो खुद बा खुद बन जाते है, मित्रता को मित्र के चरित्र के अनुसार निभाया जाता है, ऐसे ही हर परवरिश अपने आप में एक संपूर्ण नया अध्याय है |
  इतिहास अपने को दोहराता है और अकबर के कई शताब्दी के बाद बापू के घर भी एक सलीम पैदा हुआ था हरिलाल के नाम से।काश बापू ने मुगल इतिहास पर ध्यान दिया होता तो वोह हरिलाल को यूँ न खोते।

Tuesday, February 2, 2010

पुनर्जन्म ब्लॉग का और हमारा

यह पोस्ट मेरी लम्बे समय तक मेरी आखरी पोस्ट रहेगी में ब्लॉग जगत में फिर आऊंगा "नीलम दी चिम्प " के नाम से मगर तब तक के लिये आज्ञा चाहूँगा (वाह रे ब्लॉग जगत जब लिखता था तो कोई झाकने नहीं आया अब देखता हूँ तो 3 लोग देख रहे है मेरे बंद पड़े ब्लॉग को। वैसे भीड़ से मुझे बचपन से ही डर लगता हैं और मेरा श्रेष्ठ कार्य गुपचुप ही होता है।)
पुनर्जन्म का विचार मूल रूप से तो हिन्दू धर्म से आया है , परन्तु आजकल विदेशियों में भी इसका प्रभाव बड रहा है, कुछ दिनों पहले हमारे यहाँ पुनर्जन्म पर एक धारावाहिक भी प्रसारित हुआ था जो की विदेशी कार्यक्रम की नक़ल था। हमने उनकी नक़ल की या उन्होंने हमारी, लेकिन जरा सोचिये अगर हम पुनर्जन्म के विचार फैला दे, तो दुनिया कितनी सुन्दर हो जायेंगी, गरीब और अमीर के भेद मिट जायेंगे, आप इस जन्म में अमीर हो सकते है लेकिन पिच्छले जन्म के आपके साथी, आपके वंशज अब भी गरीब हो सकते है , आप इस जन्म में पुरुष है तो पिछले जन्म में स्त्री भी हो सकते है, आप इस जन्म में हिन्दू है लेकिन हो सकता हैं की दुनिया के किसी कोने में आपको सिने से लगाने वाली आपकी पिछले जन्म की माँ कही किसी चर्च में प्रार्थना कर रही हो। कितनी समदर्शी हो जायेंगी ऐसी दुनिया, मगर विचार कीजिये की ये पिछले जन्म की घटनाए हमसे छुपायी ही क्यों जाती हैं? शायद हमारा अपराध बोध छुपाने के लिये, या शायद इसलिए की हमारे जीवन का मूल उद्देश्य ही हमसे दूर हो जाएगा, हम जीवन की किसी भी गहराई को समझने का प्रयास ही बंद कर देंगे, समाज से हमारा लगाव ख़त्म हो जायेंगा। (क्योंकि हम ये ही नहीं सोच पायेंगे की हम किस समाज का हिस्सा हैं , हमारा पिता कौन हैं माता कौन हैं)। इस तरह से देखा जाय तो जो युवा लोग तपस्या के लिये घर छोड़ देते है वोह अपने जीवन का कुछ उद्देश्य ही अधुरा छोड़ देते हैं। तब इन्हें मुक्ति कैसे मिल सकती है? इस लिहाज से हिन्दू आश्रम व्यवस्था ही उपयुक्त प्रतीत होती है, तपस्या/संन्यास के लिए आयु निर्धारित होनी चाहिए. जो स्व्यम ही अपना जीवन अधूरा छोड़ गया वोह आपके जीवन को कैसे सवारेंगा?
ईन सबसे इतर है पुनर्जन्म पर विश्वास करना, हम पिछला जनम देख पाये या ना देख पाये इस पर विश्वास ही कराले तो शायद हमारे देश में जो नॉर्थ इंडियन साउथ इंडियन का झगड़ा है या महाराष्ट्र में ठाकरे कि दादागिरी है वोह खत्म हो जायेंगि, मेरी भगवान से प्रार्थना हैं कि कोई बाल ठाकरे को पिछले जनम में ले जाए और आइना दिखाये उन्हें.