Friday, February 19, 2010

मुग़ल इतिहास मेरी नजर से!

मुग़ल सल्तनत का इतिहास परवरिश के लिये एक बहुत बड़ी सिख है. अकबर १३ वर्ष की कम आयु में ही बादशाह बना दिया गया था क्योंकि हुमायूं की मृत्यु समय से बहुत पहले हो गई थी. परन्तु राजसत्ता के भूखे लोग सत्ता पर काबिज होने के लिये तरह तरह के षड़यंत्र रचते रहे. चमत्कारिक रूप से या ईश्वर की इच्छा से अकबर न केवल साबुत बच निकल गया वरन इनका सामना करते करते उसने स्वयं ही सिख लिया की किस तरह मजबूत इंसान और मजबूत बादशाह बना जाय। शायद जीवन की सबसे बड़ी सिख उसके लिये अनुशाशन थी। अकबर ने स्वयं अनुशाशन जीवन से लड़कर या कहले की ठोकर खाकर सिखा था, परन्तु उसने सलीम पर अनुशाशन थोपने की कोशिश की। सलीम हठी होता गया और अनारकली जैसे प्रकरणो के लिये अकबर को उसके खिलाफ बेहद कठोर रुख अपनाना पड़ा। सलीम ने हमेशा खुद को एक राजकुमार के रूप में देखा और उसे अकबर का अनुशाशन अमान्य लगा, पर अनुशाशन की महत्ता को नजरअंदाज कर वोह खुद कभी अकबर जितना प्रभावी प्रशासक और शहन्शाह नहीं बन सका. इसका एक और परिणाम ये भी हुआ की उसने अपने बेटे शाहजहाँ को बेहद लाड प्यार से पाला। जिससे शाहजहाँ का मन मश्तिष्क ही इस बात में विशवास करने लगा की चाहे कुछ भी हो जाए उसकी रंगरलियों में कोई खलल नहीं पड़ना चाहियें। शाहजहाँ इतना ज्यादा विलासी था की इरान से आया लुटेरा नादिर शाह उस सिंहासन मयुरतख्त को ही उठा कर ले गया जिस पर शाहजहाँ बैठा था। नादिर शाह चाहता तो हिन्दोस्तान पर आसानी से राज कर सकता था, लेकिन शायद उसे अपना वतन प्यारा था। शाहजहाँ की विलासिता का एक और नमूना है खुद मुमताज महल, जो आगरा से लगभग ९०० किलोमीटर दूर बियाबान जंगलो में अपनी १६वि संतान को जन्म देते समय मारी गई, सवाल ये है की मुमताज गर्भावस्था में राजधानी से इतनी दूर कैसे पहुच गयी? क्या जनाब शाहजहाँ इस कदर पागल थे की ये समझ नहीं पाए की अपनी प्रिया को गर्भावस्था में शिकारगाह पर ले जाकर उसकी मौत को दावत दे रहे है? १६-१७ शताब्दी में जन्म देते समय बहुत बड़ी संख्या में स्त्रियों की मृत्यु हो जाती थी, तो एक महारानी को तो अपने राजमहल में होना चाहियें ना ऐसे समय, जहां बेहिसाब दास दासियीं और वैद्य-हाकिम उनको देख सके, बियाबान जंगलो में उसे क्या मिलेगा मौत के सिवाय? जो लापरवाह बादशाह अपनी विलासिता और वासना के चलते अपनी सबसे प्रिय पत्नी को इस तरह से मौत के मुह में धकेल सकता है उसके राज में प्रजा का क्या हाल होंगा इसकी तो बस कल्पना ही की जा सकती है! न केवल नादिर शाह जैसे बाहरी लुटेरे जनता का खून चूस रहे थे बल्कि भीतरी सामन्तो ने भी अवाम का हद से ज्यादा शोषण किया। शाहजहाँ को सिर्फ अपनी विलासिता से मतलब था तो उसने अपनी अगली पीढ़ी पर कोई ध्यान नहीं दिया, परिणाम स्वरुप उनके सबसे बड़े बेटे “दारा शिकोह” को प्रशाशन छोड़, पढ़ाई लिखाई से ही मतलब था , और औरंगजेब को ये लगने लगा की हिन्दुस्तान का मुस्लिमिकरण ही सभी समस्याओं का अंत है, शायद उसने नादिर शाह और इरान की कट्टरधर्मिता को ही अधिक मजबूत और आदर्श मान लिया था. जेहादी विचारो के साथ सेना और प्रशासन पर औरंगजेब की पकड़ शाहजहाँ और दारा शिकोह से भी कही आगे बड़ गई। दारा शिकोह को मौत के घाट उतार कर और शाहजहाँ को जेल में सड़ने के लिये डालकर औरंगजेब ने परवरिश का अध्याय पूरा कर दिया। काम(राजकाज) में ज्यादा अधिक ध्यान और अत्यधिक अनुशासन से सलीम/ जहांगीर पैदा होते है, जरुरत से ज्यादा लाड प्यार और शाहजहाँ जैसे लापरवाह विलासी संतान होती है, कोई ध्यान ही न दो तो आपको जेल में सड़ने छोड़ने वाली औलाद मिलेंगी। आपको इन सबके बिच में अपनी संतान का मित्र होना चाहियें।मित्रता करने  के लिए अक्सर आप अपनी पिछली पीडी से शिक्षा नहीं लेते बल्कि मित्र तो खुद बा खुद बन जाते है, मित्रता को मित्र के चरित्र के अनुसार निभाया जाता है, ऐसे ही हर परवरिश अपने आप में एक संपूर्ण नया अध्याय है |
  इतिहास अपने को दोहराता है और अकबर के कई शताब्दी के बाद बापू के घर भी एक सलीम पैदा हुआ था हरिलाल के नाम से।काश बापू ने मुगल इतिहास पर ध्यान दिया होता तो वोह हरिलाल को यूँ न खोते।

Tuesday, February 2, 2010

पुनर्जन्म ब्लॉग का और हमारा

यह पोस्ट मेरी लम्बे समय तक मेरी आखरी पोस्ट रहेगी में ब्लॉग जगत में फिर आऊंगा "नीलम दी चिम्प " के नाम से मगर तब तक के लिये आज्ञा चाहूँगा (वाह रे ब्लॉग जगत जब लिखता था तो कोई झाकने नहीं आया अब देखता हूँ तो 3 लोग देख रहे है मेरे बंद पड़े ब्लॉग को। वैसे भीड़ से मुझे बचपन से ही डर लगता हैं और मेरा श्रेष्ठ कार्य गुपचुप ही होता है।)
पुनर्जन्म का विचार मूल रूप से तो हिन्दू धर्म से आया है , परन्तु आजकल विदेशियों में भी इसका प्रभाव बड रहा है, कुछ दिनों पहले हमारे यहाँ पुनर्जन्म पर एक धारावाहिक भी प्रसारित हुआ था जो की विदेशी कार्यक्रम की नक़ल था। हमने उनकी नक़ल की या उन्होंने हमारी, लेकिन जरा सोचिये अगर हम पुनर्जन्म के विचार फैला दे, तो दुनिया कितनी सुन्दर हो जायेंगी, गरीब और अमीर के भेद मिट जायेंगे, आप इस जन्म में अमीर हो सकते है लेकिन पिच्छले जन्म के आपके साथी, आपके वंशज अब भी गरीब हो सकते है , आप इस जन्म में पुरुष है तो पिछले जन्म में स्त्री भी हो सकते है, आप इस जन्म में हिन्दू है लेकिन हो सकता हैं की दुनिया के किसी कोने में आपको सिने से लगाने वाली आपकी पिछले जन्म की माँ कही किसी चर्च में प्रार्थना कर रही हो। कितनी समदर्शी हो जायेंगी ऐसी दुनिया, मगर विचार कीजिये की ये पिछले जन्म की घटनाए हमसे छुपायी ही क्यों जाती हैं? शायद हमारा अपराध बोध छुपाने के लिये, या शायद इसलिए की हमारे जीवन का मूल उद्देश्य ही हमसे दूर हो जाएगा, हम जीवन की किसी भी गहराई को समझने का प्रयास ही बंद कर देंगे, समाज से हमारा लगाव ख़त्म हो जायेंगा। (क्योंकि हम ये ही नहीं सोच पायेंगे की हम किस समाज का हिस्सा हैं , हमारा पिता कौन हैं माता कौन हैं)। इस तरह से देखा जाय तो जो युवा लोग तपस्या के लिये घर छोड़ देते है वोह अपने जीवन का कुछ उद्देश्य ही अधुरा छोड़ देते हैं। तब इन्हें मुक्ति कैसे मिल सकती है? इस लिहाज से हिन्दू आश्रम व्यवस्था ही उपयुक्त प्रतीत होती है, तपस्या/संन्यास के लिए आयु निर्धारित होनी चाहिए. जो स्व्यम ही अपना जीवन अधूरा छोड़ गया वोह आपके जीवन को कैसे सवारेंगा?
ईन सबसे इतर है पुनर्जन्म पर विश्वास करना, हम पिछला जनम देख पाये या ना देख पाये इस पर विश्वास ही कराले तो शायद हमारे देश में जो नॉर्थ इंडियन साउथ इंडियन का झगड़ा है या महाराष्ट्र में ठाकरे कि दादागिरी है वोह खत्म हो जायेंगि, मेरी भगवान से प्रार्थना हैं कि कोई बाल ठाकरे को पिछले जनम में ले जाए और आइना दिखाये उन्हें.