मोम था मै, पर
दुनिया ने सदा से मुझे पत्थर समझा,
पहले चोट पर चोट देकर मेरा बदन तराशा,
फिर जब बरसो तक जलकर मैंने नया जीवन पाया,
कोई संगदिल मुझे जूतों तले दबाकर ले गया,
और फिर से चोट खाने के लिए बिच सड़क पर छोड़ गया,
स्फटिक हिम सा श्वेत था मै, पर अब एक अपशिष्ट विकृति हूँ मै,
चाहे दुनिया मुझे पत्थर समझे, पर मोम था मै, मोम हूँ मै|
मुझ पर चोट करने वाले एक दिन थक जायेंगे,
पर हम नये सांचे में ढलकर नए रूप में फिर आयेंगे,
तब शायद दुनियां ये समझे, मोम था मैं, मोम हूँ मैं|
पहले चोट पर चोट देकर मेरा बदन तराशा,
फिर जब बरसो तक जलकर मैंने नया जीवन पाया,
कोई संगदिल मुझे जूतों तले दबाकर ले गया,
और फिर से चोट खाने के लिए बिच सड़क पर छोड़ गया,
स्फटिक हिम सा श्वेत था मै, पर अब एक अपशिष्ट विकृति हूँ मै,
चाहे दुनिया मुझे पत्थर समझे, पर मोम था मै, मोम हूँ मै|
मुझ पर चोट करने वाले एक दिन थक जायेंगे,
पर हम नये सांचे में ढलकर नए रूप में फिर आयेंगे,
तब शायद दुनियां ये समझे, मोम था मैं, मोम हूँ मैं|
स्फटिक हिम सा श्वेत था मै, पर अब एक अपशिष्ट विकृति हूँ मै,
ReplyDeleteचाहे दुनिया मुझे पत्थर समझे, पर मोम था मै, मोम हूँ मै|
sundar prastuti.
अरशद भाई;
Deleteटिपण्णी हेतु धन्यवाद, परन्तु यह कविता तो मेने अपने ह्रदय की पीड़ा व्यक्त करने के लिए लिखी थी, मेरी पीड़ा को सुन्दर कह कर मेरी मानसिक स्थिति को और दुखदायी न बनाये.
नीलम