Thursday, May 10, 2012

कर्मफल


कई बार घर के जब बच्चे आपस में झगड़ते है, तो घर में मा बाप बड़े बच्चे को समझाते है, बेटा छोटा तो नासमझ है तू तो समझदार है, मान जा छोटे की ही बात रख ले| यही भगवान राम ने सीता माता के साथ किया था, जब नासमझ प्रजा ने अयोध्या के राजसिहासन पर ऊँगली उठाई, सब को सुखी रखने के प्रयास में सीता माता के साथ अत्याचार हो गया| यहाँ से हमें एक बात ये भी सिखाने को मिलती है की दुनिया में बुरे लोग क्यों होते है, क्योंकि अच्छे लोग ज्ञानी और अज्ञानी, योग्य और अयोग्य में अंतर नहीं करते| कोई परिस्थितिवश अज्ञानी रह जाता है तो कोई जानबूझकर आलस्य से भरकर अज्ञानता का रास्ता अपनाता है, लेकिन एक अज्ञानी यदि दुखी है है तो एक भला मनुष्य उसका भी दुःख हरने का ही प्रयास करेगा| और एक तानाशाह उससे कहेगा की तुम अपना भला बुरा समझाने के योग्य नहीं हो, और अपने से छोटे लोगो में योग्यता अनुसार भेद करेगा| यहाँ ये भी समझाना जरुरी है की कर्मफल इसलिए नहीं होता की आपने सही या गलत राह चुनी, कर्मफल इसलिए होता है की आपकी वजह से औरो के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? आप अपनी राहें चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन किसी और को चोट पहुचाने का आपको अज्ञानतावश भी कोई अधिकार नहीं है, मुक्ति तब तक नहीं मिल सकती जब तक चोट खाने वाला आपको क्षमा नहीं कर देता।
 इसका अर्थ ये हैं की अज्ञानता में किये हुए अपराध की भी सजा होती हैं| कर्मफल से तो स्वयं श्रीराम भी नहीं बच पाए थे और बाली को छुप कर मारने पर उन्हें भी कृष्ण के रूप में शिकारी के हाथो मरना पडा था| संभवतया वो १६००० स्त्रियां जिन्हें कृष्ण ने नारकासुर से मुक्त कराया था, वो श्रीराम की ही अज्ञानी प्रजा थी, असुर द्वारा अपहरण होने पर अपरहित पर ही लांछन लगाने के लिए उन्हें अगले जन्म में स्वयं अपहरण का और अपमान का अनुभव करना पड़ा. यदि राम ने सीता माता का त्याग किया तो कृष्ण ने उन १६००० से विवाह कर ये भी स्थापित करने का प्रयास किया की अपहरण के लिए स्त्री को दोष न दिया जाय| लेकिन कालान्तर में हमने कृष्ण के आदर्श को भुला कर प्राचीन परिपाटी को पुनः अपना लिया, सच भी है लोकतन्त्र के इस युग में कडुवा पीना किसे अच्छा लगता है, जो ज्यादा लोक लुभावन वादे करे वही अच्छा है, अफ़सोस न तो नेता राम है न ही प्रजा राम को राजा बनाने को तैयार है| जबतक ज्ञान का प्रकाश हर ह्रदय तक नहीं पहुच जाता हमारे आलस्य के फल के रूप में हमें तानाशाह / स्वार्थपरक नेता मिलते रहेंगे, राम राज्य के स्वप्न देखने से पहले हमें अपने आस पास की सारी प्रजा को राम राज्य के योग्य ज्ञानी बनाना होगा|

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