Tuesday, September 20, 2011

बीती ताहि बिसार दे.....पर कब तक?

क्या क्षमा की कोई सीमा हो सकती है? विशेष तौर पर गाँधीवाद का सम्मान सिखते और अन्ना बनने की तरफ बड़ते भारत के नौजवानों के लिए यह प्रश्न विचारणीय है. विशेषरूप से गाँधीजी ने तो कहा था अपने शत्रुओ को भी क्षमा कर दो और उनसे प्रेम करो.  तो क्या धन के लोभी और भाषणवीर नेताओ  को क्षमा मिल जाना चाहियें? शायद कुछ गांधीवादी लोग मुझसे असहमत हो लेकिन मेरा मानना है की इसकी(क्षमा कर पाने की) भी एक सीमा है, और उस सीमा के पार जाने वालो को दंड ना मिलना अकर्मण्यता होंगी, जो गांधीवाद को कलंकित करेगी.
महाभारत के कई लोगो ने भिन्न-२ निहितार्थ निकाले है, ऐसा ही एक मेरा निचोड़ है की, महाभारत यह कहती है की उस शत्रु को कभी क्षमा मत करो जो युध्ध समाप्ति के बाद प्रहार करे | इश्वर दया के सागर है, करुणा निधान है लेकिन वे भी अश्वथ्थामा को क्षमा नहीं कर पाए तो हम मिट्टी के पुतलो की क्या बिसात. दुर्योधन और शकुनी जैसे कपटी और कुटिल भी इश्वर की कृपा से, पीड़ा से मुक्ति पाकर मोक्ष और इश्वर के चरणों में स्थान पा लेते है, लेकिन अश्वथ्थामा के लिए प्रभु चरणों में कोई स्थान नहीं है और काल के अंत तक पीड़ा ही उसका भाग्य है. युद्ध में लड़ता हर सैनिक अपने कर्त्तव्य से बंधा होता है, उनके दिए घाव या तो भर जाते है, या घायल वीरगति को प्राप्त हो जाते है, लेकिन युद्ध में मिले घावो को कुरेदने और उस पर नमक छिडकने वाले, घावो को कभी ना भर पाने वाले नासूर बना देने वाले तो अमानवीय राक्षसों की श्रेणी में ही गिने जाते है, उन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता केवल पीड़ित किया जा सकता है. 
इस लिहाज से हमें चीन और पाकिस्तान को कभी माफ़ नहीं कर सकते क्योंकि वे युद्ध विराम के बाद प्रहार कर रहे है.  लेकिन ये बात  सिर्फ देश और सैनिक लड़ाइयो पर लागु नहीं होती , कोर्ट में जिरह और जहर उगलने के बाद एक पक्ष जीतेगा और एक हारेगा लेकिन जो पक्ष अदालत में फैसला समाप्त होने के बाद दुसरे पर प्रहार करे, उसे पीड़ा देने के लिए आपको आगे आना चाहिए, क्योंकि यही आपका कर्त्तव्य है. 
उसी प्रकार दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के वे नेता जो अब अन्ना पर प्रहार कर रहे है, वे माफ़ी पाने के न तो कभी योग्य थे और न ही कभी होंगे. हाँ मनीष तिवारी को क्षमा मिल सकती है, क्योंकि उसने युद्ध से पहले सिर्फ आलाकमान के हुक्म की तामिल की थी. इस युद्ध या अन्ना की स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई से ये साबित हुआ की असली आलाकमान तो देश की जनता है. जो अब भी मरते हुए दुर्योधन का मोहरा बन, अन्ना या जनता से लड़ रहे है, उन्हें इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा और न हीं हमें उन्हें करना चाहिए, समय आ गया है इन अश्वथ्थामाओ को जीवन पर्यन्त पीड़ा देने का.

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