Wednesday, October 10, 2012

असुरदास पार्ट II

बहुत दिनों तक छाती पीटी, बहुत दिनों तक रह लिए उदास;
तोड़ के अपनी ग़म  की समाधी, लौट आये नीलम असुरदास।

चाहते न चाहते जीवन एक नई  करवट ले रहा है, हर चोट जीवन की दिशा धारा नहीं बदल सकती लेकिन जीवन का झरना बड़ी बाधाओ के आने पर , अपने नए रस्ते खुद बखुद बना लेता है, मेरा जीवन भी बदलता रह हैं और शायद आगे भी रहेगा, और अब मै  खुद को कविताओ के अधिक और अधिक  निकट पा रहा हूँ , शायद इस ब्लॉग पर मेरी लेखनी अब कम  चलेगी, क्योकि अब में अपने कविताओ और हास्य कविताओ के लिए बनाये गए ब्लॉग "फिश मार खां"(fish-mar-khan.blogspot.in) पर अधिक सक्रिय रहूँगा।
इस ब्लॉग पर भी कभी कभी कुछ पोस्ट डालने के प्रयास किया करूँगा, मेरी कई रचनाये इस ब्लॉग पर अधूरी ही पड़ी है, और वक्त आने पर उन्हें एडिट कर पोस्ट तो करूँगा ही, लेकिन इस समय विदाइ लेनी  ही होंगी ।

Sunday, September 16, 2012

विषेले स्वप्न,अँधेरी दुनिया


जब मनमित ना मिले, यूँ लगा की अरमानों के पंख जले;
जीवन तो जलाया था पहले, पर यूँ लगा की उजालो से मेरे प्राण जले|
संगीत तो कभी था ही नहीं, पर यूँ लगा की थम गई स्वर ध्वनि;
ह्रदय में न थी कोई कमजोरी, पर यूँ लगा की स्वच्छंद हुई हृदयगति|

Friday, June 29, 2012

मोम की व्यथा

मोम था मै, पर दुनिया ने सदा से मुझे पत्थर समझा,
पहले चोट पर चोट देकर मेरा बदन तराशा,
फिर जब बरसो तक जलकर मैंने नया जीवन पाया,
कोई संगदिल मुझे जूतों तले दबाकर ले गया,
और फिर से चोट खाने के लिए बिच सड़क पर छोड़ गया,
स्फटिक हिम सा श्वेत था मै, पर अब एक अपशिष्ट विकृति हूँ मै,
चाहे दुनिया मुझे पत्थर समझे, पर मोम था मै, मोम हूँ मै|
मुझ पर चोट करने वाले एक दिन थक जायेंगे,
पर हम नये सांचे में ढलकर नए रूप में फिर आयेंगे,
तब शायद दुनियां ये समझे, मोम था मैं, मोम हूँ मैं|

Thursday, May 10, 2012

विवाह क्यों?


जीवन  की सभी राहे अंत में ईश्वर या खुदा पर ही समाप्त होती है, लेकिन विवाह जीवन का एक ऐसा मोड लगता है जिसका आध्यात्मिक विकास से कोई लेना देना न हो| पर जाने क्यों अंदर से ऐसा भी  लगता रहता है की ये विकास का ही एक पड़ाव है, इसी तथ्य का विवेचन मेने इस पोस्ट में करने का प्रयास किया है| 
गौर से देखा जाय तो, कोई मूर्ति पर ध्यान लगाता है, कोई जीवन साथी पर, कोई ज्ञान पर, अंत में जब ध्यान की गहराई में मन शांत हो जाता है तो आत्मा की आवाज सुनाई देती है, और वही ईश्वर तक ले जाती है| लेकिन ध्यान लगाने के लिए जीवन साथी ही क्यों? कोई घनिष्ट मित्र क्यों नहीं?  
जीवन में जीवन साथी का वही भाग होता है जो एक ऐसे सच्चे दोस्त की तरह है जो तुम्हारे हमेशा साथ रहता हो, और जो तुम्हारी अंतरात्मा को साफ़ रख सकता हो| जीवन में  निरंतर ऐसी घटनाये होती ही रहती है जिनके चलते हमारी अंतरात्मा पर धुल/कालिख जमने लगती है, साथ ही हम अपनी ही आत्मा की आवाज़ को अनसुना  कर धीरे-२ स्वयं तो अंदर से बहरे हो जाते है और अंतरात्मा को गूंगा बना देते है| यदि हम स्वयं अंदर झाँकना बंद कर दे तो बड़े से बड़ा गुरु भी हमें ईश्वर तक नहीं पहुचा सकता| ऐसे में हमें ऐसा दोस्त चाहियें जो हमें इतना नज़दीक से जानता हो की वो हमारे अंदर झांक सकता हो , और ये काम एक जीवनसाथी के अलावा कोई नहीं कर सकता|
 दोस्त जो तुम्हारे साथ नहीं रहते धीरे-२ नए परिवेश में ढल जाते है, और परस्पर समझ धीरे-२ कम हो जाती है, परन्तु चाहे संतति के हित के लिए ही सही, विवाह के बाद साथ रहना ज़रुरी हो जाता हैं| संतान का जन्म एक प्रकृति प्रदत्त मुश्किल की घड़ी है जो शायद इसलिए बनाई ही गई है की आप एक दूसरे के बेहद करीब आ सके| साथ बिताए सुख के पल तो कुछ समय के बाद धुँधले पड़ जाते है लेकिन मुश्किल समय में दिया हुआ साथ आपको गहराई से जोड़ देता है| 
वही दूसरी तरफ से देखा जाय तो संतान  का जन्म स्वयं अपने आप में एक आध्यात्मिक घटना है, चाहे संतान का माता पिता की और प्रेम हो या माता पिता के  संतान के प्रति प्रेम और करुणा के भाव हो, ये प्रेम भाव भी तो मन/आत्मा के मेल को धोने की एक श्रेष्ठ औषधियाँ ही है| आप ईश्वर की सभी संतानों में अपनी संतान की छवि देख कर अपने समस्त बंधनों से मुक्त हो सकते है, या संसार के अन्य लोगो को माता पिता की भाँती आदर देकर परमपिता परमेश्वर को साक्षात महसूस कर सकते है| भक्ति ईश्वर को पुत्र/पुत्री , माता/पिता, या सखा/सहेली  देखकर की जा सकती है| और फिर यह सच ही है, आत्मा के रूप में ना तो इस संसार में आप ईश्वर के बाद आये है न उसके पहले, अत: यह तो आप पर निर्भर है की आप किस पर ध्यान लगाना अधिक स्वाभाविक और सहज मानते है|
कई बातें हम सब जानते है/समझते है, परन्तु उनका हमें कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता, यहाँ ये भी ध्यान देने योग्य है की अंतरात्मा के पास हर सवाल का जवाब है, फिर भी हम बार बार जन्म लेते है, क्योंकि जिसे सिर्फ जानते है, अनुभव नहीं कर पाते वो कागजी ज्ञान तो समय की धारा में बह जाता है| विवाह की पौधशाला हमें जीवन के अनुभव देने के लिए है, निश्छल प्रेम में डूबे, साफ़ अंतर्मन में बोलते ईश्वर की आवाज़ सुनाने के लिए है|

कर्मफल


कई बार घर के जब बच्चे आपस में झगड़ते है, तो घर में मा बाप बड़े बच्चे को समझाते है, बेटा छोटा तो नासमझ है तू तो समझदार है, मान जा छोटे की ही बात रख ले| यही भगवान राम ने सीता माता के साथ किया था, जब नासमझ प्रजा ने अयोध्या के राजसिहासन पर ऊँगली उठाई, सब को सुखी रखने के प्रयास में सीता माता के साथ अत्याचार हो गया| यहाँ से हमें एक बात ये भी सिखाने को मिलती है की दुनिया में बुरे लोग क्यों होते है, क्योंकि अच्छे लोग ज्ञानी और अज्ञानी, योग्य और अयोग्य में अंतर नहीं करते| कोई परिस्थितिवश अज्ञानी रह जाता है तो कोई जानबूझकर आलस्य से भरकर अज्ञानता का रास्ता अपनाता है, लेकिन एक अज्ञानी यदि दुखी है है तो एक भला मनुष्य उसका भी दुःख हरने का ही प्रयास करेगा| और एक तानाशाह उससे कहेगा की तुम अपना भला बुरा समझाने के योग्य नहीं हो, और अपने से छोटे लोगो में योग्यता अनुसार भेद करेगा| यहाँ ये भी समझाना जरुरी है की कर्मफल इसलिए नहीं होता की आपने सही या गलत राह चुनी, कर्मफल इसलिए होता है की आपकी वजह से औरो के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा? आप अपनी राहें चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन किसी और को चोट पहुचाने का आपको अज्ञानतावश भी कोई अधिकार नहीं है, मुक्ति तब तक नहीं मिल सकती जब तक चोट खाने वाला आपको क्षमा नहीं कर देता।
 इसका अर्थ ये हैं की अज्ञानता में किये हुए अपराध की भी सजा होती हैं| कर्मफल से तो स्वयं श्रीराम भी नहीं बच पाए थे और बाली को छुप कर मारने पर उन्हें भी कृष्ण के रूप में शिकारी के हाथो मरना पडा था| संभवतया वो १६००० स्त्रियां जिन्हें कृष्ण ने नारकासुर से मुक्त कराया था, वो श्रीराम की ही अज्ञानी प्रजा थी, असुर द्वारा अपहरण होने पर अपरहित पर ही लांछन लगाने के लिए उन्हें अगले जन्म में स्वयं अपहरण का और अपमान का अनुभव करना पड़ा. यदि राम ने सीता माता का त्याग किया तो कृष्ण ने उन १६००० से विवाह कर ये भी स्थापित करने का प्रयास किया की अपहरण के लिए स्त्री को दोष न दिया जाय| लेकिन कालान्तर में हमने कृष्ण के आदर्श को भुला कर प्राचीन परिपाटी को पुनः अपना लिया, सच भी है लोकतन्त्र के इस युग में कडुवा पीना किसे अच्छा लगता है, जो ज्यादा लोक लुभावन वादे करे वही अच्छा है, अफ़सोस न तो नेता राम है न ही प्रजा राम को राजा बनाने को तैयार है| जबतक ज्ञान का प्रकाश हर ह्रदय तक नहीं पहुच जाता हमारे आलस्य के फल के रूप में हमें तानाशाह / स्वार्थपरक नेता मिलते रहेंगे, राम राज्य के स्वप्न देखने से पहले हमें अपने आस पास की सारी प्रजा को राम राज्य के योग्य ज्ञानी बनाना होगा|

Monday, April 23, 2012

साइबर युग के राधा कृष्ण


कल्पना कीजिये अगर राधा कृष्ण इस युग में जन्मे होते तो कैसे होते? कृष्ण अपनी गायों के गले में मोबाइल बाँध कर जंगल में छोड़ देते और जब वापिस बुलाना होता अपने कक्ष में बैठे बैठे ही बांसुरी बजा देते, मोबाइल पर बांसुरी की धुन सुनकर गायों को अपने कन्हैया की याद आती और वो खुद-ब-खुद वापिस चली आती| ऐसे ही गोप गोपिया नन्द बाबा के यहाँ कान्हा की बांसुरी की MP3 लेने के लिए लाइन लगाते की तुम्हारी धुन सुनके हमारी देशी गाय भी विदेशी गायों की तरह दूध देने लगती हैं| राधा, कृष्ण को ताने मारती की तुम्हारे फेसबुक अकाउंट पर बार बार कमेन्ट करने वाली ये चुड़ैल है कौन? कृष्ण कभी अपनी बांसुरी पर व्यस्त होते तो कभी लैपटॉप पर, आखिर गुस्सा हो कर राधा लैपटॉप छुपा देती और कृष्ण अपनी  मुरली पर तान देते
राधिका तुने लेपि चुराई, राधिका तुने लेपि चुराई
 काहे को तुने रार मचाई रे
ना इसकी मेमोरी तेरे आइपैड से बेहतर, ना स्क्रीन ही है बिगर
गेमिंग के लिए तुझे इसको करना पड़ेगा कॉन्फ़िगर, प्रोसेसर भी है इसका स्लोवर
काहे को तुने रार मचाई रे.......
राधिका तुने लेपी चुराई........   

Friday, February 3, 2012

भारतीय समाज की कम्युनिस्ट जड़े

कठोरतम  कम्युनिज्स्म एक ऐसी धारणा है जहाँ अपराधी और अपराध के शिकार को एक ही निगाहों से देखा जाता है, जैसे पैसे अधिक रखने वाला उससे बड़ा अपराधी है जो चोरी करता है, क्योंकि चोर को चोरी की जरुरत इसी लिए हुई, क्योंकि धनवान ने अपना धन नहीं बाटा! लेकिन फिर हमारा धर्म भी तो यही सिखाता है की न्याय करने का अधिकार सिर्फ भगवान को है , तो हम ये निर्धारित करने वाले कौन है की दोषी कौन है.
 इसी के चलते,  देखा जाए तो हमारा समाज भी स्त्री अपराध के लिए स्त्री को ही दोषी ठहराता आया है, शायद ऐसी सोच इस कुतर्क के चलते भी है की समाज के बनाए हुए सुरक्षा के नियमों का पालन नहीं करके, उस स्त्री ने अन्य स्त्रियों को नियमों का उल्लंघन करने के लिए उकसाया है!  
यहाँ तक की गर्भपात की शिकार महिलाओ को भी कई तरह की सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाती  है, मानो अपने बच्चे को खोने की उन्हें कोई पिडा नहीं थी, जो उन्हें और पीड़ित करने पर समाज उतारू हो गया?
लेकिन समाज में गहरे से धसा कम्युनिस्म का जबड़ा सिर्फ महिलाओं को डसने/निगलने तक सिमित नहीं है, मेरी तरह तलाक पीडित समाज के कई कार्यों में भाग लेने का अधिकार नहीं रखते है क्योंकि मैंने एक पवित्रम वादा तोडा है, अग्नि और अन्य समस्त देवताओं के सामने लिए हुए वादे को तोडना एक बहुत बड़ा अपराध है, इस्से आगे समाज को इससे कोई सरोकार नहीं होता की इस वादे में वादाखिलाफी आखिर किसने की? तलाक के लिए भूतपुर्व पति और पत्नी दोनों बराबर के दोषी ठहराये जाते है. 
मेरी नजर में अपराध के शिकार और अपराधी को बराबर की दृष्टि से देखना, अपने आप में एक अपराध है,  लेकिन पता नहीं कब समाज/भगवान हमारी सुनवाई करेगा? हमारे समाज में कम्युनिस्ट जड़े बहुँत गहरे से समाई है, २० वि सदी के चीन और हमारे समाज में अंतर केवल इतना है की वोह भगवान को ना मानकर न्याय की जरुरत नहीं समझते थे/है  और हम भगवान को मानकर न्याय की जरुरत नहीं समझते.

दिग्गी राजा की दुनिया से साभार..............

तसलीमा नसरीन और सलमान रुश्दी को बोलने की अनुमति नहीं देने वाला भ्रष्ट तंत्र ये मान चूका था  की स्वामी बडबोलापन दिखा कर राजनितिक आत्महत्या कर चुके है और अब जो बचा है वो उनका भुत/भूतकाल  है. वहि दूसरी तरफ सडगल चूका हमारा अपराधिक प्रवृति को शरण देने वाला सरकारी तंत्र मृतप्राय हो चूका है. ऐसे मृत तंत्र में खलबली मचा देने वाला सुप्रीम कोर्ट एक ओझा के समान है, और इन्ही को मेरा यह पहला कार्टून समर्पित है

भारत में लोकतंत्र की कबर खुद गई है ?????

Monday, January 2, 2012

Mercy के मालिक श्रीयुत निलम असुरदास के दोहे


निलम गावत देखके मेलोडीज करी पुकार;
बहुत हो गया तोहरा बेसुरा आयटम सोंग, कब आएगी हमारी बार |



निलम कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
या खावै अकेला बोराय, वा गावै सैकड़ो बोराय |


निलम-नीलाम गुलाम ते दो कौड़ी भी अधिक नाय;
या रोवै भीख में लोग माल दई जाय;  वा गावै माल छोड़ी के लोग भागी जाय |