Friday, February 3, 2012

भारतीय समाज की कम्युनिस्ट जड़े

कठोरतम  कम्युनिज्स्म एक ऐसी धारणा है जहाँ अपराधी और अपराध के शिकार को एक ही निगाहों से देखा जाता है, जैसे पैसे अधिक रखने वाला उससे बड़ा अपराधी है जो चोरी करता है, क्योंकि चोर को चोरी की जरुरत इसी लिए हुई, क्योंकि धनवान ने अपना धन नहीं बाटा! लेकिन फिर हमारा धर्म भी तो यही सिखाता है की न्याय करने का अधिकार सिर्फ भगवान को है , तो हम ये निर्धारित करने वाले कौन है की दोषी कौन है.
 इसी के चलते,  देखा जाए तो हमारा समाज भी स्त्री अपराध के लिए स्त्री को ही दोषी ठहराता आया है, शायद ऐसी सोच इस कुतर्क के चलते भी है की समाज के बनाए हुए सुरक्षा के नियमों का पालन नहीं करके, उस स्त्री ने अन्य स्त्रियों को नियमों का उल्लंघन करने के लिए उकसाया है!  
यहाँ तक की गर्भपात की शिकार महिलाओ को भी कई तरह की सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाती  है, मानो अपने बच्चे को खोने की उन्हें कोई पिडा नहीं थी, जो उन्हें और पीड़ित करने पर समाज उतारू हो गया?
लेकिन समाज में गहरे से धसा कम्युनिस्म का जबड़ा सिर्फ महिलाओं को डसने/निगलने तक सिमित नहीं है, मेरी तरह तलाक पीडित समाज के कई कार्यों में भाग लेने का अधिकार नहीं रखते है क्योंकि मैंने एक पवित्रम वादा तोडा है, अग्नि और अन्य समस्त देवताओं के सामने लिए हुए वादे को तोडना एक बहुत बड़ा अपराध है, इस्से आगे समाज को इससे कोई सरोकार नहीं होता की इस वादे में वादाखिलाफी आखिर किसने की? तलाक के लिए भूतपुर्व पति और पत्नी दोनों बराबर के दोषी ठहराये जाते है. 
मेरी नजर में अपराध के शिकार और अपराधी को बराबर की दृष्टि से देखना, अपने आप में एक अपराध है,  लेकिन पता नहीं कब समाज/भगवान हमारी सुनवाई करेगा? हमारे समाज में कम्युनिस्ट जड़े बहुँत गहरे से समाई है, २० वि सदी के चीन और हमारे समाज में अंतर केवल इतना है की वोह भगवान को ना मानकर न्याय की जरुरत नहीं समझते थे/है  और हम भगवान को मानकर न्याय की जरुरत नहीं समझते.

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