Sunday, April 5, 2009
हिंदू मूर्तिपूजक या आदर्शपूजक?
हिंदू या सनातन धर्मं की व्याख्या अलग अलग लोग अलग अलग तरह से करते है, पर मेरा मत है की हम वास्तव में मूर्तिपूजक न होकर आदर्शपूजक है। जीवन सवारने हेतु जीवन में एक आदर्श अपनालेना ही काफी है। यद्यपि कई सारे आदर्श एक साथ एक ही समय उपस्थित हो सकते है। पालक , पोषक और नाशक की त्रिमूर्ति तो सभी जानते है परन्तु सुक्ष्म रूप से देखे तो एक और धारा बह रही है हमारे धर्मं में, इन्हे हम शिव साधक , राम भक्त , और कृष्ण मार्गी कह सकते है। जन साधारण में सबसे लोकप्रिय आदर्श शिव ही है, शिव प्रतिक है निर्मोह के सर्वसमर्थ होकर भी महलों में न रहकर साधारण मानवो से भी कमतर में पहाड़ पर ही गुजारा कर लेते है, परन्तु शिव आदर्श है परिवार के लिए, एक पत्निव्रतधारी पूर्ण समर्पित परिवार के मुखिया, पति और पत्नी में अनन्य प्रेम के प्रतिक।राम का आदर्श शिव के आदर्श से मिलता जुलता है, राम स्वयं रामेश्वरम में शिव की उपासना भी करते है , तो अपने उपास्य की ही भाति श्रीराम ने निर्मोह और परिवार के आदर्शो को यथावत रखा, परन्तु यहाँ २ महत्वपूर्ण अन्तर है, शिव स्व्यमभुः है, इसलिए माता पिता की भक्ति के आदर्श को स्थापित नही कर सकते, एक आदर्श पुत्र के आदर्श को रखा श्रीरामचंद्र ने, साथ ही एक आदर्श प्रजापालक को भी उन्होंने स्थापित किया। पर इन सबके बाद आया श्रीकृष्र्ण का आदर्श, जहाँ कर्म की बात आ गई वहां केवल और केवल निर्मोह ही रह गया, परिवार और अन्य आदर्श पीछे छुट गए। जनसामान्य के लिए श्रीकृष्र्ण का निर्मोह तो मुशकिल है ही, वो राम के समान राजा भी नही हो सकता, तो वोह शिव की आराधना करता है, शिव की ही तरह गीता का पाठ /ध्यान करता है। आदर्श एक दुसरे से छोटे या बड़े नही होते, अपितु देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार अलग अलग व्यक्तियों के लिए भिन्न-२ होते है। मुझे आश्चर्य होता है जब कुछ कृष्णमार्गी राम मन्दिर या शिव मन्दिर में ये कह कर जाने से इनकार कर देते हैं की कृष्ण उनसे श्रेष्ठ है, क्या इन लोगो का कोई परिवार नही होता, क्या ये लोग अपने माता पिता को आदर नही देते? ये ही व्यक्ति वास्तव में मूर्तिपूजक है, मूर्ति तो याद रही उसके पीछे के आदर्श भुला दिए।
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सच में, आदर्श ही महत्वपूर्ण हैं।
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )